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विविध भजन

Gau bechkar bakri lyawe Kanya ka dhan khawe,गऊ बेचकर बकरी लयावे कन्या का धन खावे

गऊ बेचकर बकरी लयावे कन्या का धन खावे

बुरे काम पर नीत करनिया, पर नारी से प्रीत करण्या आखिर में पछतावे हो।आखिर में पछतावे।

बुरे काम का बुरा नतीजा देखो कोई करके री। घट में पाप कापता है दिन-रात कलेजा धड़के री।

खोटे काम कमांने वाला पीपल वृक्ष लगाने वाला,वो आम कटे सु पावे हो,आखिर में पछतावे।

गऊ बेचकर बकरी लयावे कन्या का धन खावे री, ठाकुर जी के मंदिर में जा जूता धर्म उठावे री।

खेत काटकर सीचे डाली मात पिता ने देवें गाली, मार्ग में सूल बिछावे हो। आखिर में पछतावे।

देश धर्म की करे बुराई गला गऊ का काटे री।निरपराध के दोष लगावे कुंवा बावड़ी बांटे री।

बड़ पीपल को काटन वाला हां करके फिर नाटन वाला, जड़ा मूल से जावे हो।आखिर में पछतावे।

रुक जा कंठ दशों दरवाजा, कोन हिमाती तेरा री, हरिनारायण शर्मा तहता हो जंगल में डेरा री।

काल बली सिर पर मंडराता कितने दिन बकरे की माता,बेटा री कुशल मनावे हो।आखिर में पछतावे।

बुरे काम पर नीत करनिया, पर नारी से प्रीत करण्या आखिर में पछतावे हो।आखिर में पछतावे।

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