नैना लागे जब मोहन से, नैना को कुछ रास ना आए, जान बसे अब वृंदावन में, साँसे भी तेरा गुण गाए,
ना मैं सीता ना शबरी हूँ, नाही राधा ना मीरा, प्रेम में तोहरे मन लागे, तोहरे बिन जीवन आधा, मोहे रंग दो, मोहे रंग दो अपने ही रंग में, मोहे ओ सांवरिया, मैं हुई तेरी दीवानी,बनके बावरिया।।
जबसे हुआ तेरा, मेरे जीवन में आगमन, मन हो गया कन्हैया, और तन मेरो वृंदावन, मैं हूँ कोई जग ज्ञानी, मैं तो जानु बस इतना, देखू जब जब तुझको कान्हा, तोसे हटे ना मोरी नज़रिया, मोहे रंग दो, मोहे रंग दों अपने ही रंग में,मोहे रंग दों अपने ही रंग में, मोहे ओ सांवरिया, मैं हुई तेरी दीवानी, बनके बावरिया।।
प्रातः काल में उठके कान्हा, भोग मैं तुमको लगाऊं, माखन मिश्री जो तू बोले, सब तेरे लिए लाऊँ, खेलूं संग मैं दिन भर तेरे, तुझको ही मैं सवारुँ, ऐसे बन बरसो जीवन में, तुझमें में मैं घुल जाऊँ, ना मैं सीता ना शबरी हूँ, ना ही राधा ना मीरा, प्रेम में तोहरे मन लगे, तोहरे बिन जीवन आधा, मोहे रंग दो, मोहे रंग दों अपने ही रंग में, मोहे ओ सांवरिया, मैं हुई तेरी दीवानी, बनके बावरिया।।