थारा रंग महल में अजब शहर में
आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण सैज बिछाई ॥
हाँ रे भाई इणा देवलिया में देव नहीं ,
झालर कूटे गरज कसी ॥
थारा रंग महल में , अजब शहर में
आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण सैज बिछाई ॥
हाँ रे भाई बेहद की तो गम नाहीं,
नुगरा से सैण कसी ॥
थारा रंग महल में , अजब शहर में
आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण सैज बिछाई ॥
हाँ रे भाई अमृत प्याला भर पावो,
भाईला से भ्राँत कसी ॥
थारा रंग महल में , अजब शहर में
आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण सैज बिछाई ॥
हाँ रे भाई कहै कबीर विचार ,
सैण माहि सैण मिली ।
थारा रंग महल में , अजब शहर में
आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण सैज बिछाई ॥