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निर्गुण भजन nirgun Bhajan

Pakshi chod taal ud gaya,पक्षी छोड़ ताल उड़ गया पता नही जाने कीत बढ़ गया,nirgun Bhajan

,पक्षी छोड़ ताल उड़ गया पता नही जाने कीत बढ़ गया

तर्ज,धीरे धीरे बोल कोई

पक्षी छोड़ ताल उड़ गया,पता नही जाने कीत बढ़ गया।

दर्शक में थी ताल पे।अपनी अपनी हाल पे।पक्षी छोड़ ताल उड़ गया,पता नही जाने कीत बढ़ गया।

तरह तरह का सभी करे प्रचार। कोई भला कोई कहे तने बेकार।कोई रोव खड़ा,कोई मुदा पड़ा। कोई कश्ती डाले माल में। तन के कपड़े साल में।

पक्षी छोड़ ताल उड़ गया,पता नही जाने कीत बढ़ गया।

कहीं पिता कहीं बैठा रोवे तात। मात-पिता तेरी बुआ बहन और खास। गई भुजा टूट, चला गया रूठ।कोई जोर चले ना काल पे। मां जाए नख लाल के।

पक्षी छोड़ ताल उड़ गया,पता नही जाने कीत बढ़ गया।

बांध जोड़ तेरी अर्थी करके त्यार। धर कंधे पर मानस चाले चार।गई जला चिता,हुई खतम प्रथा।कुछ तो सौंप प्रतिपाल पे, उस किसन कन्हैया लाल पे।

पक्षी छोड़ ताल उड़ गया,पता नही जाने कीत बढ़ गया।

कहे कमल सिंह सहज कटेगा बंध। हरि नाम का कर बंदे प्रसंग।सुन ले प्रीति जग की रीति।ना समय रुके किसी ताल पे।वो टीका हुवा है काल पे।

पक्षी छोड़ ताल उड़ गया,पता नही जाने कीत बढ़ गया।

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