दयालु तुम्हारी दया चाहता हूँ
चरणों में थोड़ी जगह चाहता हूँ।
अज्ञानता ने डेरा जमाया,
किया मन को चंचल ऐसा लुभाया
लेलो शरण में शरण चाहता हूँ।
दयालु तुम्हारी दया चाहता हूँ।चरणों में थोड़ी जगह चाहता हूँ।
उठे चाहे अंधी तूफ़ान आये,
मेरे मन को भगवान दिगा नहीं पाए,
विश्वाश तेरा ऐसा चाहता हूँ,
दयालु तुम्हारी दया चाहता हूँ।चरणों में थोड़ी जगह चाहता हूँ।
नजरे कर्म अगर हुई ना तुम्हारी,
रहेगी उजड़ती आशा की कयारी,
खिले फूल गुलशन सदा चाहता हूँ,
दयालु तुम्हारी दया चाहता हूँ।चरणों में थोड़ी जगह चाहता हूँ।
विनती सुनो न मेरी कन्हियाँ,
मिले भीख तेरी दया की कन्हियाँ,
नंदू दीवाना बनु चाहता हूँ,
दयालु तुम्हारी दया चाहता हूँ।चरणों में थोड़ी जगह चाहता हूँ।
दयालु तुम्हारी दया चाहता हूँ
चरणों में थोड़ी जगह चाहता हूँ।