गुरु बिन ज्ञान गंगा बिन तीर्थ,
एकादशी बिना व्रत कहाँ है।
बालु की भीत अटारी का चढ़ना,
ओछे की प्रीत कटारी का मरना,
मन ना मिले उससे मिलन नहीं है,
प्रीत करे उससे कपट नहीं है।
गुरु बिन ज्ञान गंगा बिन तीर्थ,
एकादशी बिना व्रत कहाँ है।
गुरु से कपट मित्र से चोरी,
या होवे निर्धन या होवे कोढ़ी,
माँ बिन लाड़ पिता बिन आदर,
बिन भैया व्यवहार नहीं है।
गुरु बिन ज्ञान गंगा बिन तीर्थ,
एकादशी बिना व्रत कहाँ है।
सास बिन लाड़ ससुर बिन आदर,
बिन पति के श्रृंगार नहीं है,
धन बिन मान पुरुष बिन आदर,
बिना पुत्र परिवार नहीं है।
गुरु बिन ज्ञान गंगा बिन तीर्थ,
एकादशी बिना व्रत कहाँ है।
पोथी बिन पंडित खड़ग बिन क्षत्री,
बिन सुमिरन के स्वर्ग नहीं है,
गंगा न नहायी उसका नहाना नहीं है,
दान न दिया उसका पुण्य नहीं है।
गुरु बिन ज्ञान गंगा बिन तीरथ,
एकादशी बिन व्रत नहीं है।