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Hanuman amritvani part 1, हनुमान अमृतवाणी भाग १

हनुमान अमृतवाणी भाग १

भक्त राज हनुमान का,
सुमिरण है सुख कार,
जीवन नौका को करे,
भव सिन्धु से पार ।

संकट मोचन नाथ को,
सौंप दे अपनी डोर,
छटेगी दुखों को पल में,
छायी घटा घनघोर ।

जब कष्टों के दैत्य को,
लगेगा बजरंग बाण,
होगी तेरी हर मुश्किल,
धडियों में आसान ।

महा दयालु हनुमत का,
जप ले मनवा नाम,
काया निर्मल हो जाएगी,
बनेंगे बिगड़े काम ।

जय जय जय हनुमान,
जय हो दया निधान ।

कपि की करुणा से मन की,
हर दुविधा हर जाए,
दया की दृष्टि होते ही,
पत्थर भी तर जाय ।

कल्प तरो हनुमंत से,
भक्ति का फल मांग,
एक हो भीतर बहार से,
छोड़ रचा निस्वांग ।

इसकी कैसे मनोदसा,
जानत है बजरंग,
क्यों तू गिरगिट की तरह,
रोज बदलता रंग ।

कांटे बोकर हर जगह,
ढूँढ रहा तू फूल,
घट – घट की वो जानता,
क्यों गया रे तू भूल ।

जय जय जय हनुमान,
जय हो दया निधान ।

करुणा मयी कपिराज को,
धोखा तू मत दे,
हर छलियों को वो छले,
जब वो खेल करे ।

हम हैं खिलौने माटी के,
हमरी क्या औकात,
तोड़े रखे ये उसकी,
मर्जी की है बात ।

साधक बन हनुमंत ने,
जिस विधि पायो राम,
बहुत नहीं तो थोड़ा ही,
तू कर वैसा काम ।

बैठ किनारे सागर के,
किमुती अनेकी आस,
डूबन से मन डरता रे,
कच्चा तेरा विश्वास ।

जय जय जय हनुमान,
जय हो दया निधान ।

सुख सागर महावीर से,
सुख की आंच न कर,
दुःख भी उसी का खेल है,
दुखों से ना डर ।

बिना जले ना भट्टी में,
सोना कुंदन होय,
आंच जरा सी लगते ही,
क्यों तू मानव रोय ।

भक्ति कर हनुमान की,
यही है मारग ठीक,
मंजिल पानी है अगर,
संकट सहना सिख ।

बुरे करम तो लाख हैं,
भला कियो ना एक,
फिर कहता हनुमंत से,
मुझे दया से देख ।

जय जय जय हनुमान,
जय हो दया निधान,
जय जय जय हनुमान,
जय हो दया निधान ।

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