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विविध भजन

Kachu rayi ghate aur til nahi badhane ka,कछु राई घटे और ,तिल नहीं बढ़ने का,

कछु राई घटे और ,
तिल नहीं बढ़ने का।

कछु राई घटे और ,
तिल नहीं बढ़ने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

एक रथ पालकी ,
घोड़े पर चढ़ता है।
कोई सिर पर बोझा ,
लिया लिया फिरता है।
एक पाट पीताम्बर ,
वस्त्र पहने रहता है।
कोई गरीब बेचारा ,
पड़े ठण्ड मरता है।
एक वेमाता के हाथ है ,
अंक लिखने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

कछु राई घटे और ,
तिल नहीं बढ़ने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

एक लखपति सेठ ,
लाखो का बिणज करता है।
पड़ जावे टोटा ,
इधर उधर फिरता है।
एक चाँद सूरज ,
अधर जोत तपता है।
पड़ जावे फीका ,
जब ग्रहण पूर्ण लगता है।
करमो के भाव से ही ,
आदर मिलने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

कछु राई घटे और ,
तिल नहीं बढ़ने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

एक पूरी अयोध्या ,
बाग़ बड़ा गुलजारी।
दशरथ के घर में ,
रामचंद्र अवतारी।
एक राम लक्मण ,
संग में सीता नारी।
पिता वचन सुन ,
वन की करी तैयारी।
रावण ने खोय दी ,
सोने सरीखी गढ़ लंका।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

कछु राई घटे और ,
तिल नहीं बढ़ने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

एक हंसराज ,
समन्द बिच रहता है।
पुरबला पुण्य से ,
मोती चुग खाता है।
कीड़ी को कण ,
हाथी को मण देता है।
टुकनगिरी का ,
ख्याल अधर चलता है।
एक दिया जुण में ,
सच्चा नाम ईश्वर का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

कछु राई घटे और ,
तिल नहीं बढ़ने का।
लिख दिया विधाता ,
लेख नहीं टलने का।

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