तर्ज, सावन का महीना
आ गई है गौरा, घर-घर में मचे शोर। मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।
इधर घुमाए गोरा,उधर घुमाए। इसको नचाय गोरा उसको नचाये।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 नाच रही है ऐसे,जैसे वन में नाचे मोर।मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।🌺🌺🌺🌺🌺आ गई है गौरा, घर-घर में मचे शोर। मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।
रंगबिरंगी मैंने खुद को सजाया।गोरा ईसर को भी खूब सजाया।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺गोरा के हाथों डोरी,चाहे ले जाए कहीं और।मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।🌺🌺🌺🌺आ गई है गौरा, घर-घर में मचे शोर। मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।
टीका लगाए गोरा मेहंदी लगावे।पास बुलाए चाहे दूर बुलाए।नाच नचावे हमको खुद बन जावे मोर।।मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।🌺🌺🌺🌺आ गई है गौरा, घर-घर में मचे शोर। मैं बनी पतंग मेरी, गोरा बन गई डोर।