जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।🌺🌺🌺🌺🌺🌺
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है।
नहीं चाहिए ये दुनियां के,
निराले रंग ढंग मुझको।🌺🌺🌺🌺🌺🌺
निराले रंग ढंग मुझको ।
चली जाऊँ मैं वृंदावन,
तेरा श्रृंगार काफी है।जगत के रंग क्या देखूं,तेरा दरबार काफी है।
जगत के साज बाजों से,
हुए हैं कान अब बहरे।🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हुए हैं कान अब बहरे ।
कहाँ जाके सुनूँ बंशी,
मधुर वो तान काफी है।जगत के रंग क्या देखूं,तेरा दरबार काफी है।
जगत के रिश्तेदारों ने,
बिछाया जाल माया का।🌺🌺🌺🌺🌺
बिछाया जाल माया का ।
तेरे भक्तों से हो प्रीति,
श्याम परिवार काफी है।जगत के रंग क्या देखूं,तेरा दरबार काफी है।
जगत की झूटी रौनक से,
हैं आँखें भर गयी मेरी।🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हैं आँखें भर गयी मेरी ।
चले आओ मेरे मोहन,
दरश की प्यास काफी है।जगत के रंग क्या देखूं,तेरा दरबार काफी है।