तर्ज,प्यार किया तो डरना क्या
हरी नाम नहीं तो जीना क्या।🌹🌹🌹🌹अमृत है हरि नाम जगत में,इसे छोड़ विषय रस,पीना क्या।हरी नाम नहीं तो जीना क्या।
काल सदा अपने रस डोले ना जाने कब सर चढ बोले।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 हरी का नाम जपो निस्वासर। इसमें बरस महीना क्या।हरी नाम नहीं तो जीना क्या।
भूषण से सब अंग सजावे।रसना पर हरि नाम ना लावे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹देह पड़ी रह जावे यहीं पर, फिर कुंडल और नगीना क्या।हरी नाम नहीं तो जीना क्या।
तीरथ है हरि नाम तुम्हारा। फिर क्यों फिरता मारा मारा।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 अंत समय हरि नाम ना आवे, फिर काशी और मदीना क्या।हरी नाम नहीं तो जीना क्या।
हरी नाम नहीं तो जीना क्या।🌹🌹🌹🌹अमृत है हरि नाम जगत में,इसे छोड़ विषय रस,पीना क्या।हरी नाम नहीं तो जीना क्या।