तर्ज,सावन का महीना
एक अकेला कान्हा, और गोपी कई हजार। राधा के बिन सुना है, यह झूलों का त्योहार।
होठों पर बंसी सोहे, समा है सुहाना। शौकीन है मुरली वाला, झूले का पुराना।🌹🌹🌹🌹 राधा क्यों नहीं आई, यह सोच रहे सरकार।राधा के बिन सुना है, यह झूलों का त्योहार।
जोर से सखी ने ज्यों ही, झोटा दिया है। संभल ना पाया कान्हा, बेकाबू हुआ है।🌹🌹🌹🌹 छूट गई हाथों से, लो मुरली मदन मुरार।राधा के बिन सुना है, यह झूलों का त्योहार।
झूले से उतरे छलिया, सखियां ना चाहे। बंसी बिना सांवरिया, रह नहीं पाए।🌹🌹🌹🌹 मुरली तड़प के पूछे, क्यों छोड़ा पालनहार।राधा के बिन सुना है, यह झूलों का त्योहार।
इतने में राधे रानी, दौड़ी दौड़ी आई। देख दशा मोहन की, वह मुस्काई।🌹🌹🌹🌹🌹🌹 उठाकर बंसी ने दी, लो पकड़ो सिरजनहार।राधा के बिन सुना है, यह झूलों का त्योहार।
कहने लगे सांवरिया, सुन प्राण प्यारी। तेरे बिना तो कुछ ना, हस्ती हमारी।🌹🌹🌹🌹🌹 भक्त कहे श्री राधे, गिरधर का आधार। राधा के संग कान्हा झूले, रिमझिम पड़े फुहार।🌹🌹राधा के बिन सुना है, यह झूलों का त्योहार।