था बिन दीनानाथ आंगलि, कुंन पकड़सी जी।कुंन पकड़सी जी, ओ दीनानाथ कुंन पकड़सी जी।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚म्हारी पिड हरो घनश्याम आज थाने, आएं सरसी जी।
था बिन म्हारे सिर पर बाबा,कुंन तो हाथ फिरावे है। सगला मुंडो फेरकर बैठया,कुंन तो साथ निभावे है।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 मझधारा से बेडो कईयां,पार उतरसी जी।था बिन दीनानाथ आंगलि, कुंन पकड़सी जी।
म्हारी हालत सेठ सांवरा,था स्यू कोनी छानी रे। एक बार थे पलक उघाड़ो, देखो म्हारे कानी रे। थारे देखयां बिगड़ी म्हारी, श्याम सुधर सी जी।था बिन दीनानाथ आंगलि, कुंन पकड़सी जी।
आख्यां सामी घोर अंधेरो,कुछ ना सूझे आगे श्याम। ईब के होसी सोच सोच के,म्हाने तो डर लागे श्याम। 🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚हर्ष म्हारो आगे को रस्तों,श्याम ही करसी जी।था बिन दीनानाथ आंगलि, कुंन पकड़सी जी।
तर्ज, आ बाबा सा री लाडली कठीने चाली रे