तर्ज,फिरकी वाली
बनवारी ओ कृष्ण मुरारी,बता कुन मारी,पूछे यशोदा मात रे।लाला कहो थारे मनडे री बात रे।
भेज्यों थो तने गाय चरावन, रोवतडो घर क्यूं आयो। किन रे संग झगडो कर लीनो माटी में तन भर दिन्हों।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 कुंन तने मारयो नाम बता दे,मैया जद पुचकार्यो।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚कान्हो रोव, दरद घनों होवे, जद फेरयो मैया हाथ रे।लाला कहो थारे मनडे री बात रे।
बैठ्यो थो मैया में तो कदम के नीचे,बोली गुजरिया बंसी बजा। नट गयो में तो नाही बजाऊं,छीनी बंसी दीनी बगा।🦚🦚🦚🦚आज गुजरिया मारी मने,सारी ही मिलकरियां।बंसी तोड़ी,कलाई भी मरोड़ी,और मारी मने लात रे।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚की मैया कोई भी सुनी ना मेरी बात रे।लाला कहो थारे मनडे री बात रे।
सुनकर के बाता कान्हा कंवर की,मैया रो हिवड़ो भर आयो।माटी झाड़ी सारे बदन की, हीवडे से अपने लिपटायों।🦚🦚🦚🦚🦚भोलो ढालो कुछ ना जाने,मेरो यो नंदलाला।गुजरी खोटी,पकड़ूंगी बिंकी चोटी, यूं मैया झूंझलाय रे।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚लाला कहो थारे मनडे री बात रे।
मैया की बाता सुन सुन मोहन,मन ही मन में मुस्काए।ताराचंद कहे इस छलिए का,भेद कोई भी ना पावे।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚कोई न जाने माया इसकी, यो ही वेद बखाने। पच पच हारया ऋषि मुनि सारा,के दिन और रात रे।🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚लाला कहो थारे मनडे री बात रे।
बनवारी ओ कृष्ण मुरारी,बता कुन मारी,पूछे यशोदा मात रे।लाला कहो थारे मनडे री बात रे।