तर्ज,कैसे सपरी ओ रामा कैसे सपरी
हंसा चाले तो ले चालूं रे झुंझनू नगरी। झुंझुनू नगरी रे तेरी बनसी बिगड़ी। हंसा…
पाव धरयां धरती पर तेरी, निर्मल होसी काया। तन मन शीतल होसी पाकर, अटल छत्रकी छाया।☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️ थमजा पहले शीश नवालयूं रे, झुंझुनू नगरी। हंसा….
आगे चालयां मनभावन, मंदिर का दर्शन होसी। देख छटा फुलवारी की तूं, सुध बुध सारी खोसी।☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️मुख से कईयां सबकुछ बोलूं रे, झुंझुनू नगरी। हंसा..
तीरथ धाम बनो दादी को, यो अलबेलो मंदिर।सारे जग की रक्षा करती, बैठी दादी अंदर। प्यास नैनों की बुझालूं रे, झुंझुनू नगरी। हंसा..
भादी मावस मंगसिर नौमी, लागे मेलो भारी।भक्ति भाव ले मन से आवे,लाखों नर और नारी।☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️पेड़ा नारियल भोग लगालयूं रे,झुंझनू नगरी।
के सोचे है हंसा तेरी,पूरी होसी आश,मन इच्छा फल दादी देसी, मन में रख विश्वास।☀️☀️तेरे साग में भी चालूं रे,झुंझनू नगरी।हंसा….