तर्ज,मन डोले मेरा तन डोले
मेरा मन पापी, मेरा मन कपटी, कभी भजे ना हरी का नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
घोड़ा होवे तो लगाम लगाऊं, ऊपर जीन बंधाऊं। हो असवार चढ़ूं में ऊपर, सत्य की चाल चलाऊं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 रे मनवा सत्य की चाल चलाऊं। मारूं कोड़े, तो दौड़े मनके घोड़े, तब लेऊं,तुम्हारा नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
मेरा मन पापी, मेरा मन कपटी, कभी भजे ना हरी का नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
हाथी होवे तो जंजीर घलाऊं, चारों पैर बंधाऊँ। बनके महावत चढ़ूं में ऊपर,अंकुश देय चलाऊं। रे मनवा अंकुश देय चलाऊं।🌹🌹🌹🌹🌹बस में कर लूं अपनी सवारी, तब धरूं तुम्हारा ध्यान रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
मेरा मन पापी, मेरा मन कपटी, कभी भजे ना हरी का नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
लोहा होवे तो अरण घलाऊं, ऊपर धूना धुकाऊं। लेय हथोड़ा घड़ने बैठूं, चोटम चोट लगाऊं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹रे मनवा चौटम चोट लगाऊं। मार-मार कर इसे सिखाऊं,तब जपे तुम्हारा नाम रे। कैसे समझाऊं सांवरिया।
मेरा मन पापी, मेरा मन कपटी, कभी भजे ना हरी का नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
सोना होवे तो सुहागा मिलाऊं,पानी ज्यों पिघलाऊं। लेकर चिमटा घड़ने बैठूं,जंतर तार खिचाऊं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 रे मनवा जंतर तार खिचाऊं। ताव लगे तो भूलूं सबकुछ, करदूं तुम्हारे नाम रे। कैसे समझाऊं सांवरिया।
मेरा मन पापी, मेरा मन कपटी, कभी भजे ना हरी का नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।
ज्ञानी होवे तो ज्ञान सुनाऊं, सत की बात बताऊं। कहत कबीर सुनो भाई साधु, द्वारका पुर ले जाऊं।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 रे मनवा द्वारका पुर ले जाऊं। हाथ में माला, सुनो गोपाला,भूलू ना तेरा नाम रे। कैसे समझाऊं सांवरिया।
मेरा मन पापी, मेरा मन कपटी, कभी भजे ना हरी का नाम रे।कैसे समझाऊं सांवरिया।