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विविध भजन

Man Re japle tu Subah Sham by prakash gandhi,मन रे जप ले तू सुबह शाम,

मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।

मन रे जप ले तू सुबह शाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम।

वह अमृत का सच्चा सागर, क्यों भटके तू प्यासा।वह अमृत का सच्चा सागर, क्यों भटके तू प्यासा। इस अमृत से प्यास बुझा ले, दूर हो तेरी निराशा। शरण में आकर शीश झुकाकर, करूं उसको प्रणाम।सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।

हर मुश्किल में वो ही आकर, सबको धीर बंधाता।हर मुश्किल में वो ही आकर, सबको धीर बंधाता। भंवर में अटकी नैया को, वो ही पार लगाता। संकट रूपी इस नैया को, पल में लेता थाम।सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।

वो घट घट की जानन हारा, वही पालन हारा।वो घट घट की जानन हारा, वही पालन हारा। हर निर्बल और दिन दुखी का, वो ही एक सहारा। वह है प्रेम का भूखा प्यारे, मांगे ना कोई दाम।सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।

मन रे जप ले तू सुबह शाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम। सांचा है बस एक प्रभु का नाम।सांचा है बस एक प्रभु का नाम।मन रे जप ले तू सुबह शाम।

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