जतन बिना मिरगाँ न खेत उजाड्या रे,, सुण रे तिर खेती वाला रे भजन बिना।
पाँच मिरागला पच्चीस मिरगली असली तीन छुन्कारा। अपने अपने रस का भोगी चरता है न्यारा न्यारा रे ।
आम भी खाग्यो अमली भी खाग्यो खा गयो केसर क्यारया ।काया नगरिये म कछुयन छोड्यो ऐसा तो मिरग उजाड्या रे ।
मन मिरगले ने किस बिध रोकूँ बिडरत नाय बिडारया। जोगी जंगम जती सेवड़ा पंडित पढ़ पढ़ हारया रे।
शील संतोष की बाड़ छवाले
ध्यान गुरु रखवाला। प्रेम पारधी बाण संजोले ज्ञान भाल से मारया रे।