ना जी भरके देखा, ना कुछ बात की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की ।करो अब दृषटिप्रभु करूणा की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की।
गये जब से मथुरा वो मोहन मुरारी, सभी गोपिया ब्रज की व्याकुल है भारी ।कहाँ दिन बिताए कहाँ रात की ।करो अब दृषटिप्रभु करूणा की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की।
हम बैठे है गम उनका दिल में ही पाले। भरा ऐसे में खुद को संभाले ।ना उनकी सुनी, ना कुछ अपनी कही।करो अब दृषटिप्रभु करूणा की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की।
तेरा मुस्कुराना भला कैसे भूलें ।वो कदम की छैया, वो सावन के झूले ।ना कोयल की कू कू, ना पपिहा की पी।करो अब दृषटिप्रभु करूणा की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की।
तमन्ना यही थी कि आएंगे मोहन। मैं चरणों में वारूंगी तन मन ।ये जीवन हाय मेरा यह कैसा बिगड़ा नसीब।करो अब दृषटिप्रभु करूणा की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की।
ना जी भरके देखा, ना कुछ बात की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की ।करो अब दृषटिप्रभु करूणा की ।बड़ी आरजू थी मुलाकात की।