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विविध भजन

Guru ghar aawiya ye jad raat punam gayi hai hoy,गुरू घर आविया येजद रात पूनम गई है होय

गुरू घर आविया ये,
जद रात पूनम गई है होय।।

गुरू घर आविया ये,
जद रात पूनम गई है होय।।



पिया संग रम गई ये,
दूजो दरसे न कोय।
मन मक्का ने साफ कर,
दुरमत दीनी है धोय।।गुरू घर आविया ये,
जद रात पूनम गई है होय।।



शब्द स्वरूपी साहेब मेरो,
जगर मगर रिया होय।
सुहागन मिल पिया ने,
निज नैना लियो जोय।।गुरू घर आविया ये,
जद रात पूनम गई है होय।।



जाग्रत स्वप्न के बीच में,
अचरज आवे है मोय।
अनघड़ पियो है अधर में,
न जागे न सोय।।गुरू घर आविया ये,
जद रात पूनम गई है होय।।



उपजै विनशै है नहीं,
जन्म मरण न कोय।
अगम अगोचर देश ने,
करोड़ी लियो है जोय।।गुरू घर आविया ये,
जद रात पूनम गई है होय।।

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