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Chanchal man nishidin bhatkat hai,चंचल मन निशदिन भटकत है

चंचल मन निशदिन भटकत है

चंचल मन निशदिन भटकत है
भटकत है भटकावत है।चंचल मन निशदिन भटकत है,भटकत है भटकावत है।


ज्यूँ मरकट तरु ऊपर चढ़ केत
डार डार पर लटकत है ।चंचल मन निशदिन भटकत है,भटकत है भटकावत है।


रूकत जतन से क्षण विषयन से ,
फिर भी नही ये अटकत है ।चंचल मन निशदिन भटकत है,भटकत है भटकावत है।


काँच के हेत लोभ कर मुरख
चिंतामणि को पटकत है ।चंचल मन निशदिन भटकत है,भटकत है भटकावत है।


ब्रह्मानन्द समीप छोड़कर
तुच्छ विषयन रस गटकत है ।चंचल मन निशदिन भटकत है,भटकत है भटकावत है।

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