नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥
हरि की माला ऐसे रटणी, जैसे बांस पर चढज्या नटनी।मुश्किल है या काया डटनी, डटै तो परले तीर।नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥
गऊ चरणे को जाती बन मे, बछडे को छोड़ दिया अपणे भवन मे।सुरत लगी बछड़े की तन मे, जैसे शोध शरीर॥नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥
जल भरने को जाती नारी, सिर पर घड़ो घड़ै पर झारी।हाथ जोड़ बतलावे सारी, मारग जात वही॥नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥
गंगादास कथै अविनाशी, गंगादास का गुरु संयासी।राम भजे से कटज्या फांसी, कालु राम कहीं॥नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥