अनहोनी होती नहीं,
तू क्यों हुआ उदास ।
होनी भी टल जायेगी,
रख गुरु में विश्वास।
जितने आये कष्ट सब,
कर लेना मंजूर।
लेकिन गुरु के द्वार से,
कभी न होना दूर।
बिना गुरु के तर सका,
हुआ न ऐसा कोई शूर।
फैल रहा चारों तरफ,
मेरे गुरु का नूर ।।
गुरु चरणों में शिष्य के,
दुःख कट जाते आप ।
पास न उसके आ सके,
जग के तीनों ताप ।।
अपने गुरु से प्रीत जो,
करता है निष्काम।
गुरु चरणों में ही बसे,
उसके चारों धाम ।।
जितने भी तू कष्ट दे,
सब मुझको स्वीकार।