आज रो आनन्द सजनी,कैसे कहूँ बताय रे।
गुरू न चेला हूँ अकेला,निर्भय रहूँ मन मांय रे।।
ओर किसकी करूँ गुलामी,कोई दाय नही आय रे।
एक अंतरयामी हूँ मैं,घट रहयो समाय रे।।आज रो आनन्द सजनी,कैसे कहूँ बताय रे।
गुरू न चेला हूँ अकेला,निर्भय रहूँ मन मांय रे।।
नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।
चार वाणी चार खाणी,वहां पहूंचे कोई नाय रे।
इन सभी को किया मैंने,मुझको कौण बनाय रे।।नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।
चार वैद ओर शास्त्र छे,सब मोही ते उपजाय रे।
ब्रह्मा विष्णु मोंहे ते उपजै,सब मेरे बीच समाय रे।।नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।
नित्य हूँ आनन्द हूँ,सत्त चित सब कै मांय रे।
नेती नेती निगम थाके,कहै सकै तो नांय रे।।नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।
हूँ स्वतंत्र परतंत्र नही,अपने रूप के मांय रे।
निजानन्द की अजब मस्ती, अक्षर लागै नांय रे।।नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।
हमी देवा हमी नाथ,हमीं जात अजाय रे
मान मान अमान हम हैं,हमी हमको ध्याय रे।।नही कर्म नही करणी,नाही पंथ चलाय रे।
कौण की है माला जपनी,हंस रूप दिखाय रे।।