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विविध भजन

Fakiri jiwat dhuke re masan,धुके रे मसाण कर लेवो निज साय

धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।

फकीरी जीवत धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।
जीवत धुके रे मसाण ,
फकीरी जीवत धुके रे मसाण।



छ दर्शन छतीसो पाखंड ,
मचरही खेचा ताण।
उलट पड़े आ युद्ध के माहि ,
जद पडेली जाण।
फकीरी जीवत धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।



शीश काट लड़े कोई सूरा ,
धड़ से जूझे आण।
आठो पहर सोहलवा गावे ,
जद पूछे परयाण।
फकीरी जीवत धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।

अनंत कोट साधु जन तापे ,
नो नाधा कर जाण।
सूरा तप सहे इण जप को ,
कायर तज देवे प्राण।
फकीरी जीवत धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।



अगम निगम दो वाणी जुग में ,
ऊबी करे बखाण।
राजा प्रजा दर्शन को आवे ,
धिन जोगी थारो भाव।
फकीरी जीवत धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।

ब्रह्म मिलन का पट्टा लिखाया ,
दिन बिच उग्यो भान।
हरिराम बैरागी बोले ,
सतगरु मिलिया सुजान।
फकीरी जीवत धुके रे मसाण ,
कर लेवो निज साय।

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