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विविध भजन

Me hu puran Brahma anadi,में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि

में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि

में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि।आदि अंत होवे नहीं मेरा, सतगुरु सेन बतादि। में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि ।



जन्मे मरे सो धर्म देह का यह स्थूल उपाधि। भूख प्यास प्राणों का धर्म है, यह मुझमे नहीं लादी । मैं हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि ।में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि।



हर्ष शोक मन ही का धर्म है, मैं तो दूर भगादी कर्ता भोक्ता चिदाभास ये, आफ़द उसको लगादी। में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि।में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि।



इस जीव के लगी उपाधि, माया अविद्या आदि। शेष रहा सो में शुद्ध चेतन, मुझ में कुछ नहीं व्यादि। में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि ।में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि।



कल्याण भारतीजी समर्थ मिलिया, असल सार समझादी। परमानन्द निजरूप निरख के, सारी तर्क हटादि। में पूर्ण ब्रह्मा अनादि ।में हु पूर्ण ब्रह्मा अनादि।

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