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विविध भजन

Hari ne kutiya banayi re jaay van me,हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,

हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,

हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में, हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,



भोज पत्र की बनी कुटिया, चन्दन बली लगाई। सीता सतवंती बाग़ लगायो, सोहन मिरगो भाई चर चर जाई ।हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,

राम लक्मण दोऊ मिलकर बैठा, सीता बात सुनाई। सोहन मिरगो बागा हळियो, इन रे मिरगरी खाल म्हारे मन भाई । यवन में, हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,



इतनी बात सुनी रघुवर ने, धनुष बाण रे उठाई। में जाऊ मिरगा रे लारे, चौकस रहना मेरे लक्मण भाई। हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,



दूर जय हरी मिरग मारियो, हाहाकार मचाई। मरतो मिरगो यु बोलियों, सुध बुध लेना मेरी लक्मण भाई ।हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,



मिरग मार हरी पंचवटी आए, कुटिया पाई।
तुलसीदास आस रघुवर री, सिया को बता दो मेरा लक्मण भाई, हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,हरी ने कुटिया बनाई रे जाय वन में,.

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