कनक भवन के अंदर बैठे, सियापति रघुनाथ।हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही हैं।कनक भवन के अंदर बैठे, सियापति रघुनाथ।हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही हैं।
सरयू पर चलकर जाओ, तन मन को निर्मल कर दो।दोनों हाथों जल लेकर सूरज को अर्पण कर दो। हैं सूर्यवंश के सूरज,ये सियापति रघुनाथ। राम वही हैं कि चारों धाम वही है। कनक भवन के अंदर बैठे, सियापति रघुनाथ।हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही हैं।
त्रेतायुग चैत महीना, नवमी तिथि देखो आई। तीनों अनुज समेत यहां पर प्रगट भयें हैं रघुराई। शिव धनु तोड़ सिया संग जोड़ा, जनम-जनम का साथ। हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही हैं। कनक भवन के अंदर बैठे, सियापति रघुनाथ।हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही हैं।
बस अंत समय ये कहती, कर जोड़ के विनती करती।जीवन को धन्य बनाओ, चल धाम अयोध्या जाओ। सुबह कहो और शाम कहो, सुबह कहो और शाम कहो जय जय जय सियाराम ।हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही है।कनक भवन के अंदर बैठे, सियापति रघुनाथ,हमारे राम वही हैं कि चारों धाम वही हैं।