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विविध भजन

Bhala huwa meri gagri futi,भला हुआ मोरी गगरी फूटी मैं पनियां भरन से छूटी,

भला हुआ मोरी गगरी फूटी, मैं पनियां भरन से छूटी,

कबीरा कुआं एक है और पानी भरें अनेक
भांडे ही में भेद है, पानी सबमें एक ।।



भला हुआ मोरी गगरी फूटी, मैं पनियां भरन से छूटी,मोरे सिर से टली बला ।।



चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोए
दो पाटन के बीच यार साबुत बचा ना कोए ।।
चाकी चाकी सब कहें और कीली कहे ना कोए
जो कीली से लाग रहे, बाका बाल ना बीका होए ।।



हर मरैं तो हम मरैं, और हमरी मरी बलाए
साचैं उनका बालका कबीरा, मरै ना मारा जाए ।
माटी कहे कुम्‍हार से तू का गोंधत मोए
एक दिन ऐसा आयेगा कि मैं गूंधूंगी तोय ।।

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