कैलाशपति नंदन का, दूंदाला दुख भंजन का, रिद्धि सिद्धि गौरी नंदन का, अगर मैं सेवक होता। अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।
प्रातः उठकर मैं तेरा दर्शन करता, मंगला की आरती बड़े प्रेम से करता। पंचामृत जल से स्नान कराता। उबटन मलमल कर सिंदूर लगाता। नए कपड़े पहनाता सारे जेवर चढ़ाता, तेरे मस्तक तिलक लगाता। अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।
तेरे लड्डू चूरमा मैं भोग लगाता। मनुहार कर कर मोदक भी खिलाता। अपने हाथों से तुझे दूध पिलाता। और साथ बचाकर मैं खुद भी खाता। मेरा हक बनता है मेरा दिल कहता है, तेरे बिन यह कुछ नहीं होता। अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।
संध्या की आरती भक्तों संग करता। संध्या वंदन से तेरी महिमा गाता। जगमग ज्योति से सिंगार सजाता। तेरे संख नगाड़े नौबत भी बजाता। तुझे फूलों से सजाता तुझे इत्र लगाता, रिद्धि सिद्धि के दर्शन पाता। अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।
तेरे सयन में बाबा चरणों को दबाता। मीठे भजनों से तेरा मन बहलाता। देवों के देव की महिमा गाता। इस भवसागर से मैं मुक्ति पाता। ऐसी सेवा मुझे दे दे मेरा सब कुछ ले ले, मैं तो स्वामी भक्त कहाता। अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।
कैलाशपति नंदन का, दूंदाला दुख भंजन का, रिद्धि सिद्धि गौरी नंदन का, अगर मैं सेवक होता। अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।अगर मैं सेवक होता।