मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी। वो मोहन कृष्ण मुरारी वो गोवर्धन गिरधारी। मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी।
पहले तो आवाज लगाई, धीरे धीरे कुंडी खटकाई। मेरी घुस गयो आप अटरिया में वो मोहन कृष्ण मुरारी।मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी।
चोरी चोरी चुपके से आयो, भर के रंग हाथों में लायो। मेरे मल गर्यो दोनों गाल पे वो मोहन कृष्ण मुरारी।मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी।
या पकड़े करे बरजोरी, मल मल के मोसे खेले होली। अरे मच गयो शोर नगरिया में ओ मोहन कृष्ण मुरारी।मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी।
नैनो से नैना है मिलाये, में शर्माऊ मेरा जिया- घबराये। अरे कर गयो चोट जिगरिया पे वो मोहन कृष्ण मुरारी।मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी।
मिठो मिठो बोल रहयो मुस्काई, समझ गयी बाकी चतुराई। मोहे बुलाय गयो बीच बजरिया में वो मोहन कृष्ण मुरारी।मेरी रंग गयो रात चुनरिया रे वो मोहन कृष्ण मुरारी।