पनघट पर जब मैं भरू मटकी, कान्हा करता है शैतानी। मुझसे तू और तुझसे मैं, क्या राधा तूने बात यह नहीं जानी। यह फागुन का महीना है, महीना है फागुन का, तुझको ना बच के जाने दे। करता है तू क्यों कमाल पानी भर लाने दे। राधा करना ना तू कमाल रंग तो लगाने दे।
मेरी रंग बिरंगी हो जाए चुनरी गोटेदार किनारे की। देख जमाना भी मुस्काया है मस्ती कुंज बिहारी की। तेरी करूं शिकायत नंदन से घर जाने दे।करता है तू क्यों कमाल पानी भर लाने दे। राधा करना ना तू कमाल रंग तो लगाने दे।
रंगों का यह त्यौहार है राधे फिर काहे शर्माना है। काहे करे तू कान्हा जोरा जोरी होली तो एक बहाना है। गोपियां भी खेले हैं सखियां भी खेले है राधा तुझ को भिगोने दे।करता है तू क्यों कमाल पानी भर लाने दे। राधा करना ना तू कमाल रंग तो लगाने दे।