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विविध भजन

Sachhe man se nakoda bhakt Jo bhi jayega,सच्चे मन से नाकोड़ा भक्त जो भी जायेगा,

सच्चे मन से नाकोड़ा, भक्त जो भी जायेगा,

सच्चे मन से नाकोड़ा, भक्त जो भी जायेगा, पार्श्व भैरव के दर्शन पाकर, भव सागर तर जायेगा, तर जायेगा तर जायेगा ।।



श्री नाकोड़ा तीर्थ की, ये अमिट कहानी है, राजस्थान की धरती, ये बड़ी सुहानी है । अरावली पर्वत में, तीर्थ बड़ा प्यारा है, नाकोड़ा नाम जिसका, ये जग से न्यारा है। लूणी नदी के समीप, नाकोड़ा एक ढाणी है, पार्श्व प्रभु प्रगट हुए, पूर्वजो की वाणी है।, एक जैन संत का हुआ, इस ढाणी में जब आना, प्रेरणा करी मूर्ति की, प्रतिस्ठा है करवाना।वीरम सेन की नगरी, मेवानगर में लाये, अरावली पर्वत के बीच, प्रतिस्ठा है करवाये। सानिध्य मिला जिनका, कीर्ति रत्न सागर नाम था, ढाणी के नाम से ही बना, नाकोड़ा ये धाम था। तीर्थंकर तेविसवे, प्रभु पार्श्व यहाँ विराजे है। मूर्ति मनोहारी ज्यो, नभ में चन्दा साजे है। इस तीर्थ की यश गाथा को, कोई मिटा न पायेगा, धीरे धीरे तीर्थ का, द्धार होता जायेगा। पार्श्व भैरव के दर्शन पाकर, भव सागर तर जायेगा, तर जायेगा।

समय आगे बढ़ रहा था, तीर्थ नष्ट होने लगा, नास्तिकों के कारण, अस्तित्व अपना खोने लगा। उस घोर अंधकार में, एक ज्योत जली आशा की, रात ढलने वाली थी, फिर तो वो निराशा की । साध्वी श्री सुंदर श्री जी, इस तीर्थ में आये, जीणोद्धार हो फिर से, मन मे भाव ये आये । साथ मे थे गुरुभ्राता, हिमाचल सूरी राया, इस पुनीत कार्य मे, संघ भी आगे आया। एक दिन पाट पर, बैठे हिमाचल सुरिवर, एक बालक प्रकट हुआ, पड़ी जो उस पर नज़र। पास आकर गुरुवर के, बालक ये कहने लगा, नाम मेरा भैरव है, मुझको भी दो कही जगह ।बालक से बोले गुरुवर, एक शर्त माननी होगी, रक्षा इस तीर्थ की,रक्षा इस तीर्थ की, भैरव तुम्हे करनी होगी। जो आज्ञा आपकी होगी, सब मुझे मंजूर है, इस तीर्थ से मुझे कभी, होना नही दूर है। शीश से धड़ तक की, मेरी प्यारी मूर्ति हो, जैसलमेर का पत्थर हो, जिसमे खूबसुर्ती हो।इतना कहा बालक ने, हुआ वहां से गायब, सोच रहे गुरुदेव ये, वाक्या था बड़ा ही गजब ।भीम जी से पत्थर मंगाया, हिमाचल सुरीराज ने । खीम जी ने मूर्ति बनाई, दी शाबाशी गुरुराज ने। प्रतिस्ठा हुई भैरव देव की, कोई भूल न पायेगा, माध शुक्ल तेरस का, दिन ये जब भी आयेगा, पार्श्व भैरव के दर्शन पाकर, भव सागर तर जायेगा,

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