धन्य तेरी करतार कला का , पार नहीं कोई पाता है।
निराकार भी होकर स्वामी , सबका तू पालन करता है।निराकार निर्बधन स्वामी , जनम मरण नहीं धरता है,
धन्य तेरी करतार कला का पार नहीं कोई पाता है।
तेरी सत्ता का खेल निराला , बिरला ही मेहरम पाता है।जिनपर कृपा भई निज तेरी , तू वाको दर्श दिखाता है ।धन्य तेरी करतार कला का पार नहीं कोई पाता है।
ऋषि – मुनि और सन्त महात्मा , निश दिन ध्यान लगाता है।चार खान चौरासी के माहि तू हीं नजर एक आता है ।धन्य तेरी करतार कला का पार नहीं कोई पाता है।
पत्ते – पत्ते पर रोशनी तेरी , बिजली सी चमक दिखाता है।छकित भया मन बुद्धि तेरी जीवादास गुण गाता है ।धन्य तेरी करतार कला का पार नहीं कोई पाता है।