तर्ज, मैं निकला गड्डी लेके
रंग लेके, चंग लेके, ग्वालो को संग लेके,
नन्दलाल आया, राधा पे रंग डाल आया।
रंग लाल गुलाबी हरा हुआ, वो पिचकारी में भरा हुआ, कान्हा के डर से राधा का, सुन्दर सा मुखड़ा डरा हुआ, भरने को पिचकारी, गोवर्धन गिरधारी ब्रजलाल लाया, राधा पे रंग डाल आया।
हुई भोर कि ब्रज में शोर हुआ, अरे जमुना तट कीओर हुआ, जिसके घर में नौलख धेनु-वो कृष्ण ही माखण चोर हुआ, कुंजन की कलियों में, गोकुल की गलियो में, गोपाल आया, राधा पे रंग डाल आया।
ऐसे कपटी नन्द को छैया, मटकी पर मारे कंकरिया, पीछे से आकर चुपके से, राधाजी की पकड़ी बैंया, राधा को लगा ऐसे, पल भर में कोई जैसे भुचाल आया, राधा पे रंग डाल आया।
ये जीव ब्रहम की जोड़ी है कान्हा के संग किशोरी हैं,राधे कृष्णा कृष्णा राधे, रंग डारत भर भर झोरी है, राजु का मन हरने, शरणागत को करने, खुशहाल आया,राधा पे रंग डाल आया।