अर्पण तुझे मेरे, जीवन के हर क्षण, तुझे और क्या मैं, समर्पण करूँ ।।
मैं दास तेरा तू जगदीश्वर, मैं तुच्छ तृण हूँ तू सर्वेश्वर, तुझे भेंट क्या दूं, समझ में न आये, तुझे और क्या मैं, समर्पन करूँ ।।अर्पण तुझे मेरे, जीवन के हर क्षण, तुझे और क्या मैं, समर्पण करूँ ।।
मेरे मन के मंदिर में, तुझे मैंने पाया, हर स्वांस मैं बस, तू ही समाया, अनुपम अनोखा, दिया रूप तूने, कैसे तेरा, अभिनंदन करूँ।।अर्पण तुझे मेरे, जीवन के हर क्षण, तुझे और क्या मैं, समर्पण करूँ ।।
प्रभु आपसे मुझको, जो भी मिला है, शिकवा शिकायत न, कोई गिला है, चढ़ा मैल पापों का, ‘राजेंद्र’ पर जो, तपाकर उसे कैसे, कुंदन करूँ।अर्पण तुझे मेरे, जीवन के हर क्षण, तुझे और क्या मैं, समर्पण करूँ ।।