Categories
विविध भजन

Ishwar tere darwar ki mahima aprampar hai,ईश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है,

ईश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है,

ईश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है, बंदा न सके जान, तेरा क्या बिचार है, ईंश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है।



पृथ्वी ये जल के बीच, किस आसरे खड़ी, सूरज और चाँद घूमते, किसके आधार है, ईंश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है।



सागर न तीर लाँघते, सूरज दहे नहीं, चलती हवा मर्यादा से, किसके करार है, ईंश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है।

सूरज दह नहा, चलती हवा मर्यादा से, किसके करार है, ईंश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है।



भूमि बिछा है बिस्तरा, नदियों में जल भरा, चलती हवा दिन-रात, जीवन का आधार है, ईश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है।

ईश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है, बंदा न सके जान, तेरा क्या बिचार है, ईंश्वर तेरे दरबार की, महिमा अपार है।

Leave a comment