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Re man murakh tujh se apna pahchana nahi ram gaya,रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,

रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,

रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया…..



पगले तेरा क्या हिसाब है नहीं समझ में आता है,
जिस घर में जा रूका उसी को तू अपना बतलाता है,
ध्यान नहीं है पीछे ऐसे छोड़ हजारों गांव गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया।


रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया…..



चिंता तुझे ना यमदूतो की तेरे प्राण निकालेंगे,
चिंता है नाती बेटों की कैसे काम संभालेंगे,
चौथे पन में इसी फिक्र से सुख बदन का चाम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन भी तमाम गया,


रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया…..



अगर सुबह का भूला वापस लौट शाम घर आता है,
अच्छा है फिर आने से वह भूला नहीं कहा था है,
लेकिन रोना तो उसका है जो होते ही शाम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन भी तमाम गया,


रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया…..



यह तो माना जीवन भर की अच्छी तेरी करनी है,
त्याग मोह मन का मन के कि अब तो बना सुमरनी है,
राम पुकारा अंत समय तो फिर सीधा सुर धाम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया,


रे मन मूरख तुझ से अपना पहचाना नहीं राम गया,
अपना अपना कहते-कहते जीवन बीत तमाम गया…..

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