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विविध भजन

Aur kahi na jaye vraj rajdhani chodkar aur kahi na jaye,ओर कहीं ना जायें, ओर कहीं ना जायें,बृज़ रजधानी छोड़ कर, ओर कहीं ना जाये

ओर कहीं ना जायें, ओर कहीं ना जायें,
बृज़ रजधानी छोड़ कर, ओर कहीं ना जाये…..

ओर कहीं ना जायें, ओर कहीं ना जायें,
बृज़ रजधानी छोड़ कर, ओर कहीं ना जाये…..



बृज रज महिमा जिसने जानीं,
उसकी बदली जीवन कहानी,
बातों में किसी की आयें,
बृज रजधानी छोड़ कर ओर कहीं ना जायें,
ओर कहीं ना जाये…..



रज में लोटकर संत मुनिं जन, जीवन सफल बनायें,
श्याम भी मुख लपटायें,
बृज रजधानी छोड़ कर ओर कहीं ना जायें,
ओर कहीं ना जाये…..



इस बृज रज की महिमा को, पागल भी है गाये,
धसका भी धसता जाये,
बृज रजधानी छोड़ कर ओर कहीं ना जायें,
ओर कहीं ना जाये…..

ओर कहीं ना जायें, ओर कहीं ना जायें,
बृज़ रजधानी छोड़ कर, ओर कहीं ना जाये।

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