गणगोर की कहानी
राजा क बाया जौ-चाना, माली क बायी दूब । राजा का जौ-चना बढ़ता गया, माली की दूब घटती गई।
एक दिन माली सोच्यो कि या के बात है, राजा का जौ-चना तो बढ़ता जाव मेंरी दूब
घटती जाव।
एक दिन गाड़क ओल ल्हुक क बैठगी कि
देखां के बात है। देख छोरियां आई हैं और दूब तोड़कर ले जावे।
जना बो ऊँना का कोई घाघरा खोस लिया, कोई का ओढ़ना।
बोल्यो कि थे मेरी दूब क्यूँ लेजाओ हो। छोरियां बोली कि म्है सोलह दिन गणगोर पूँजा हो, सो म्हारा घाघरा-ओढ़ना दे दे।
सोलह दिन बाद गनगोर विदा होसी, जिक कदन म्हे तन भर-भर कुन्डारा सीरो-लापसी का ल्याकर देवांगा। पिछ वो सबका कपड़ा
पाछा दे दिया।
सोलह दिन पूरा होगा, छोरियां भर-भर सीरो
लापसी मालन न ल्याकर देई। बारन स मालन को बेटो आयो।
बोल्यो कि मां भूख लागरी है। मालन बोली कि बेटा आज तो छोरियां घणा ही सीरा-लापसी का कुन्डारा देगी है। ओबरी म पड्या है खाले।
बेटा आबेरी खोल न लाग्यो, तो ओबरी खुली
कोनी।बेटो बोल्यो मां ओबरी तो खुले कोनी।
जद माँ आ क चिटली आंगली को छींटो दियो तो ओबरी खुलगी। देख तो इसरजी तो पेचो बांध रखो है।
सारी चीजां स भन्डार भरया पड्या है। भगवान, इसर को सो भाग दिये, गोरा को सो सुहाग दिये, कहतां नं, सुनतां नं, अपना
सारा परिवार न देइये।