पत्ते पत्ते में हैं झांकी, भगवान की,
किसी सूझ वाली आँख ने, पहचान की ।
नामदेव ने पकाई, रोटी कुत्ते ने उठाई।
पीछे घी का कटोरा लिए जा रहे ।
बोले रुखी तो ना खाओ, प्रभु घी लेते जाओ।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
रूप अपना क्यूँ मुझ से छिपा रहे ।
तेरा मेरा एक नूर, फिर काहे को हजूर।
तुने शकल बनाई यह श्वान की,
मुझे ओडनी उडादी इंसान की ॥
निगाह मीरा की निराली, पी के ज़हर प्याली।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
ऐसा गिरिधर बसाया हर श्वास में ।
आया जब काला नाग, बोली धन्य मेरे भाग।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
प्रभु आये आज नाग के लिबास में ।
आओ आओ बलिहार, काले कृषण मुरार,
बड़ी कृपा हैं कृपानिधान की ।
धन्यवादी हूँ मैं आप के एहसान की ॥
इसी तरह सूरदास, निगाह जिनकी थी ख़ास।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
ऐसा नैनो में था नशा हरी नाम का ।
नयन जब हुए बंद, तब मिला वह आनंद।
आया नज़र नज़ारा घनश्याम का ।
हर जगह वो समाया,सारे जग को दिखाया।
आई आँखों में रोशनी ज्ञान की।
देखि झूम झूम झांकी भगवानी की ॥
गुरु नानक कबीर, सही जिनकी नजीर।
देखा पत्ते पत्ते में निरंकार को ।🌺🌺🌺
नज़दीक और दूर, वोही हाज़र हजूर।
यही सार समझाया संसार को ।
मेहरबानी हैं उसी मेहरबान की।