तर्ज, होलिया में उड़े री गुलाल
अब क्या होगा गणपत जी बीच बुढ़ापे में।२
संगमरमर का महल बनाया। कूलर पंखा उसमे लगाया।बहु बेटे को उसमे बिठाया।🌺आ गई मेरी खटिया बाहर,बीच बुढ़ापे में।अब क्या होगा गणपत जी बीच बुढ़ापे में।
मन मर्जी का खाना नही मिलता।जैसा मिलता खाना पड़ता।रोटी ऊपर अचार,बीच बुढ़ापे में।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺अब क्या होगा गणपत जी बीच बुढ़ापे में।
बेटा नहीं सुनता बहु नहीं सुनती।करते दोनों अपने मन की।बेटा हुआ गुलाम,बीच बुढ़ापे में।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺अब क्या होगा गणपत जी बीच बुढ़ापे में।
हाड भी सुखा मांस भी सुखा।हम तो हुवे बेकार,बीच बुढ़ापे में।🌺🌺🌺🌺🌺🌺अब क्या होगा गणपत जी बीच बुढ़ापे में।
जैसी करनी वैसी भरनी।मेरा गणपति करेंगे बेड़ा पार,बीच बुढ़ापे में।🌺🌺🌺🌺🌺अब क्या होगा गणपत जी बीच बुढ़ापे में।