तर्ज,चली कांवड़ियों की टोली
चढ़ा मेहंदी का रंग,रची लाल सुरंग।दादी किसने ये हाथों में रचाई रे। तेरे भक्तों के मन को मां भाई रे।
सोनी सोनी मेहंदी लागे, दुनिया से न्यारी। हाथों की हथेलियों में, रति प्यारी प्यारी।🌺 मैं तो वारी वारी जाऊं, सारे जग को बताऊं। मेहंदी हाथों की शोभा बनाई रे।तेरे भक्तों के मन को मां भाई रे।
चढ़ा मेहंदी का रंग,रची लाल सुरंग।दादी किसने ये हाथों में रचाई रे। तेरे भक्तों के मन को मां भाई रे।
बड़े ही नशीबों वाला, मां के मन भाए। जिसका हुक्म होवे वो ही,मेहंदी लगा पाए। दादी मुझे भी बुलाले, हाथों मेहंदी मनडाले।मैने तुझ्से मां अर्जी लगाई रे।तेरे भक्तों के मन को मां भाई रे।
मेहंदी का तो बस दादी, करके बहाना। हमें तो बस तेरा दर्शन ही पाना। 🌺🌺🌺🌺आजा हुकम सुना दे, मेरा मान बढ़ा दे। तूने कितनों की आस पुराई रे।तेरे भक्तों के मन को मां भाई रे।
चढ़ा मेहंदी का रंग,रची लाल सुरंग।दादी किसने ये हाथों में रचाई रे। तेरे भक्तों के मन को मां भाई रे।