तर्ज,कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो
सखी सपने में अनोखी बात हो गई,२।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।
मैं तो गहरी नींद में सोय रही थी।२। उस छलिया के सपनों, में खोय रही थी।२। सखी कैसे बताऊं,करामात हो गई।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।
धीरे धीरे वह पास मेरे आने लगे। २।इस बिरहन को गले से लगाने लगे।२।🌹🌹🌹 मेरी अंखियों से आंसुओं की, बरसात हो गई।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।
मैंने सोचा मैं अपने अब, दिल की कहूं।२। यह जुदाई का दर्द और, कितना सहुं।🌹🌹यही सोचत सोचत परभात हो गई।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।
अपने साजन की पागल,दीवानी हुई।२।यही चित्र विचित्र कहानी हुई।२।🌹🌹🌹🌹मिली सांवरे की झलक ये,सौगात हो गई।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।
सखी सपने में अनोखी बात हो गई,२।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।मेरी सांवरे के संग,मुलाकात हो गई।