तर्ज,म्हारा बाबा हनुमान,म्हारा दाता हनुमान
म्हारी सोहनी चिड़ी,म्हारी रूपां री चिड़ी।काया का कारीगर ने तूं, कईयां बिसरी।
नो दस मास गरभ में रही तूं, नरकां सूं घिरी।बाहर आकर राम ने भूली,राम री पूरी।🌹म्हारी सोहनी चिड़ी,म्हारी रूपां री चिड़ी।काया का कारीगर ने तूं, कईयां बिसरी।
नो दस मास घड़ता लागया,हद स्यू हद घड़ी। रूह रूह जोड़या तिल तिल सादा,तारा बीच जड़ी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹म्हारी सोहनी चिड़ी,म्हारी रूपां री चिड़ी।काया का कारीगर ने तूं, कईयां बिसरी।
पाणी पिलाऊं चूगो चुगाऊं, राखूं हरिभरी।पल पल थारी खबरां लेऊं,फिर भी तूं बिसरी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹म्हारी सोहनी चिड़ी,म्हारी रूपां री चिड़ी।काया का कारीगर ने तूं, कईयां बिसरी।
गुरु रे प्रताप से चिड़ी, जल सूं तीरी। कहत कबीर सुनो भई साधो, सत्संग में सुधरी।म्हारी सोहनी चिड़ी,म्हारी रूपां री चिड़ी।काया का कारीगर ने तूं, कईयां बिसरी।
म्हारी सोहनी चिड़ी,म्हारी रूपां री चिड़ी।काया का कारीगर ने तूं, कईयां बिसरी।