दानी होकर क्यूं चुप बैठा,ये कैसी दातारी रे।२। ओ श्याम बाबा क्यों, तेरे भगत दुखारी रे।ओ श्याम बाबा क्यों, तेरे भगत दुखारी रे।
बिना फल के जो वृक्ष ना सो वे बिन बालक क्यों नारी रे।ओ श्याम बाबा क्यों तेरे भगत दुखारी रे।
श्याम सुंदर ने खुश होकर तुझे, अपना रूप दिया है। और हमने उस रूप का दर्शन, सो सौ बार किया है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 हमारे संकट दूर ना हो तो, यह बदनामी थारी रे। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹ओ श्याम बाबा,श्याम बाबा, क्यों तेरे भगत दुखारी रे।
ना चाहूं मैं हीरे मोती, ना चांदी ना सोना। मेरे आंगन भेज दे बाबा, तुझ सा एक सलोना। हमको क्या जो बन उपवन में फूल रही फुलवारी रे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ओ श्याम बाबा,२ क्यों तेरे भगत दुखारी रे।।
जब तक आशा पूरी ना होगी, दर से हम ना हटेंगे। सब भक्तों को बहका, देंगे तेरा ही नाम लेंगे।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सोच ले तू भक्तों का पलड़ा, सदा रहा है भारी रे।ओ श्याम बाबा,२ क्यों तेरे भगत दुखारी रे।
दानी होकर क्यूं चुप बैठा,ये कैसी दातारी रे।ओ श्याम बाबा क्यों तेरे भगत दुखारी रे।