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Japakar hari om tatsat, जपाकर हरी ओम तत्सत,कीर्तन

जपाकर जपाकर जपाकर जपाकर। हरि ओम तत्सत,हरि ओम तत्सत।

जपाकर जपाकर जपाकर जपाकर। हरि ओम तत्सत,हरि ओम तत्सत।

जो दुष्टों ने लोहे का खंबा रचा था। तो निर्दोष प्रहलाद क्यों कर बचा था।🌹🌹🌹🌹🌹 करी थी विनय एक स्वर मैं जो उसने। हरि ओम तत्सत, हरि ओम तत्सत।

कहो नाथ शबरी के घर क्यों थे आए। जो आए तो क्यों बैर जूठे थे खाए।🌹🌹🌹🌹🌹जुबां पर यही था, ह्रदय में यही था। हरि ओम तत्सत, हरि ओम तत्सत।

लगी आग लंका में, हलचल मची थी। तो कुटिया विभीषण की, कैसे बची थी।🌹🌹 लिखा था यही नाम कुटिया में उसके। हरि ओम तत्सत, हरि ओम तत्सत।

सभा में खड़ी द्रोपदी रो रही थी। लज्जा के आंसू से मुंह धो रही थी।🌹🌹🌹🌹🌹 पुकारा था दिल में यही नाम उसने। हरि ओम तत्सत, हरि ओम तत्सत।

हरि नाम में इतनी शक्ति भरी थी। गरुड़ छोड़ धाएं ना देरी करी थी।🌹🌹🌹🌹🌹🌹 बढा चीर उसमें यही रंग रंगा था। हरि ओम तत्सत, हरि ओम तत्सत।

हलाहल का प्याला मीरा ने पिया था। तो विष को भी अमृत क्यों कर दिया था।🌹🌹🌹 दीवानी थी मीरा इसी नाम कि वो। हरि ओम तत्सत, हरि ओम तत्सत।

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