तर्ज,म्हारी चंद्र गवर्जा
मंदिर में बडगयो, होली खेलन से डरतो सांवरों।२
बनके बिंदनी भीतर घुसग्यो,ललकारे नर नारी। हिम्मत है तो बाहर आजा, लेकर रंग पिचकारी।मंदिर में बडगयो होली खेलन से डरतो सांवरों।२
नैन चुराकर भीतर घुसगो, कर ले तूं मनमानी। डरयो लुगायां देख सांवरो याद करावां नानी।मंदिर में बडगयो होली खेलन से डरतो सांवरों।२
ओ रंगरसिया सुन मनबसिया योके नाम कमायो।आजा अब तो थोड़ी शर्म कर, हांसे खड़ी लुगायां।मंदिर में बडगयो होली खेलन से डरतो सांवरों।२
मैं तो निर्भय तेरे नाम को ओढ़यां फिरा दुपट्टो। ऐसो काम करण से लागे सरकारी मैं बट्टो।मंदिर में बडगयो होली खेलन से डरतो सांवरों।२
मैं तेरो तूं मेरो बिहारी तूं राजी मैं राजी। चलती आई सदा चलेगी या अपनी रंगबाजी।मंदिर में बडगयो होली खेलन से डरतो सांवरों।२