तर्ज,सावन का महीना
दुनियां से जो हारा, मैं आया तेरे द्वार। यहां भी हार गया तो फिर, जाऊं कहां सरकार।
सुख में कभी तेरी, याद ना आई।🦚🦚🦚 दुख में कन्हैया तुमसे, प्रीत लगाई।🦚🦚🦚 सारा दोष है मेरा, यह करता हूं स्वीकार। यहां भी….
सब कुछ गवां के आया, लाज बची है।🦚🦚 तुम पर कन्हैया सारी, आस टिकी है।🦚🦚 सुना है हम जैसों की, तुम सुन लेता पुकार। यहां भी…
मेरा तो क्या है मैं तो, पहले ही हारा।🦚🦚 तुम से ही पूछेगा यह, संसार सारा ।🦚🦚🦚डूब गई क्यों नैया, तेरे रहते खेवनहार।🦚🦚 यहां भी…
जिसको सुनाया मैंने, अपना फसाना।🦚🦚 उसने बताया मुझको, तेरा ठिकाना।🦚🦚🦚 छोड़कर सब कुछ आया, में आखिर तेरे द्वार। यहां भी…