तर्ज,जीजा जोबनिया जलेबी भरी रस की
मैया थे तो जानो,सब के घट घट की,बोलो म्हारली या नाव कैयां अटकी।
बीच भंवर में नैया म्हारी,डगमग झोला खावे।थारे बिना कुंन मैया म्हारी,नैया पार लगावे।मैया थे तो सुनो हो बात सबकी।बोलो म्हारली..
मैया थे तो जानो,सब के घट घट की,बोलो म्हारली या नाव कैयां अटकी।
मेरो मन को दुखड़ो सारो,थारे आगे खोलूं।सीधो सादो भगत हूं थारो,सांची सांची बोलूं।बात जानूं ना में तो लटपट की।बोलो म्हारली..
मैया थे तो जानो,सब के घट घट की,बोलो म्हारली या नाव कैयां अटकी।
थारे घर में कांई कमी है,झोला भर भर बांटो।भूल हुई के मेरे से जो,देवो और ना नाटो।नही तो कहद्यो कोनी बात,थारे बस की।बोलो म्हारली…
मैया थे तो जानो,सब के घट घट की,बोलो म्हारली या नाव कैयां अटकी।
तावल कर के आओ मैया,मत ना वार लगाओ।भोला भाला भक्ताने थे, क्यों इतना तरसाओ।थारी बात उड़िका, महे तो कद की।बोलो म्हारली…
मैया थे तो जानो,सब के घट घट की,बोलो म्हारली या नाव कैयां अटकी।
थारे दर्शन खातिर मैया, मनड़ो म्हारो तरसे। अइयां ही के आणो पडसी,म्हाने थारे दर से।मैया आ जाओ थे लाज रखो सबकी।बोलो म्हारली…
मैया थे तो जानो,सब के घट घट की,बोलो म्हारली या नाव कैयां अटकी।